शतरंज में दिमाग लगाते शहर के खिलाड़ी
शतरंज के खेल में दिमाग लगाते शहर के खिलाड़ियों का प्रदर्शन बहुत बेहतर हो रहा है। सीनियर नेशनल खिलाड़ी और कोच विक्रांत कक्कड़ से हाल ही में हुए बातचीत में उन्होंने बताया की पहले जहां शतरंज खेलने वाले खिलाड़ी बहुत कम थे वही आज खिलाड़ियों की संख्या में न केवल इज़ाफ़ा हुआ है बल्कि लोगो का रुझान भी शतरंज की तरफ बढ़ा है। कोच विक्रांत ने बताया की शतरंज में मुख्य रूप से तीन प्रकार के गेम होते है क्लासिकल जिसमे प्रत्येक खिलाड़ी को २-२ घंटे का वक़्त दिया जाता है। दूसरा होता है रैपिड जिसमे प्रति खिलाड़ी ३०- ३० मिनट्स का समय अलॉटेड होता है। तीसरा ब्लिट्ज होता है जिसमे प्रति खिलाड़ी १५- १५ मिनट्स का समय दिया जाता है, जिसमे गेम को ख़त्म करने वाले विनर कहलाते है। श्री कक्कड़ कहते है की शतरंज से खिलाड़ियों का दिमाग तेज़ होता है जो उन्हें अन्य विषयो में भी सहयता करते है। चेस को समझने और खेलने के लिए पुष्तक आता है, इस खेल में प्रत्येक चाल को चलने से पहले कैलकुलेशन करते हुए आगामी चाल को भी समझने का प्रयास किया जाता है। कोच कक्कड़ से जब हमने पूछा की इसमें किस उम्र से बच्चे खेल सकते है तो उन्होंने कहा की कम उम्र से खेल को प्रारम्भ करने से फायदा होता है। उन्होंने आगे जोड़ते हुए कहाँ की शतरंज में खिलाड़ियों को रेटिंग्स मिलते है जिसमे २५०० रेटिंग्स वाले खिलाड़ी अगर ग्रैंड मास्टर के टाइटल मैच के विनर होते है उन्हें चेस में ग्रांडमास्टर कहते है। शतरंज में शुरुआत करने वाले खिलाड़ी के इंटरेस्ट लेवल पर जब हमने सवाल किया तो उन्होंने बताया की खिलाड़ी जैसे जैसे इस खेल को खेलते जाते है उनमे इंटरेस्ट आता है और एग्रेसिव खेलने की कोशिश करते है। कोच कक्कड़ की कोचिंग में २ खिलाड़ी स्टेट चैंपियन वही कई खिलाड़ी नेशनल में खेल चुके है। विक्रांत कहते है की स्कुल लेवल पर चेस को यदि प्रमोट किया जाये तो और बेहतर खिलाड़ी मिल सकते है। बिलासपुर जिला सतरंज संघ के अध्यक्ष नवीन जिंदल है। शतरंज में अंडर ७ से लेकर अंडर २५ तक तथा सीनियर वर्ग का ओपन ट्रायल होता है जिसके आधार पर जिला राज्य और नेशनल के लिए खिलाड़ी चुने जाते है।