तीरंदाज़ी से टारगेट को चीरते शहर के तीरंदाज़
शहर में तीरंदाज़ी के गुड़ सिखाते राष्ट्रीय खिलाड़ी मनमोहन पटेल आर्चरी में अपने कोचिंग से विभिन्न प्रतियोगिताओ में प्रतिवर्ष राष्ट्रीय स्तर पर मुकाबले में हिस्सा ले रहे होनहार खिलाड़ियों की खेप तैयार कर रहे है। तीरंदाजी के ओपन, एसजीएफआई , सीबीएसई और यूनिवर्सिटी में शहर के बच्चे राष्ट्रीय स्तर के मुकाबलों में हिस्सा ले रहे है। ९ वर्ष के उम्र के बच्चो से कोचिंग की सुविधा बिलासपुर के जिला खेल परिसर में श्री पटेल दे रहे है। आर्चरी में उपयोग होने वाले खेल सामग्री के सम्बन्ध में जब हमने उनसे विस्तार में जानना चाहा तो उन्होंने बताया की शुरुआत में खिलाड़ी भारत में बने वुडेन इक्विपमेंट जो की मणिपुर से मंगवाए जाते है उसका इस्तेमाल करते है। खिलाड़ी जैसे जैसे खेल को सीखते चले जाते है उसके बाद मॉडर्न इक्विपमेंट का उपयोग शुरू होता है जो की कोरियाई और अमेरिकन मेड किट होते है। मॉडर्न किट कार्बन फाइबर के बने होते है। खिलाड़ी जिस पर टारगेट को हिट करता है उसे बटरेस कहा जाता है जो हरयाणा से मंगवाए जाते है। श्री पटेल कहते है की आर्चरी के खेल में कंसंट्रेशन सबसे महत्वपूर्ण होता है जिसे डेली प्रैक्टिस से हासिल किया जाता है। कोचिंग में शामिल होने वाले नए खिलाड़ी को पहले एबिलिटी टेस्ट से गुजरना पड़ता है फिर उन्हें कैंप में रखकर सभी जरूरी एक्ससरसाइज कराये जाते है, उसके बाद उन्हें शूटिंग रेंज में बो और एरो का इस्तेमाल करने दिया जाता है। प्रारम्भ में ८ मीटर के डिस्टेंस से तीरंदाज़ी कराया जाता है बाद में प्रैक्टिस के अनुरूप दुरी बढ़ाई जाती है। प्रतिदिन सभी खिलाड़ियों को ३६० स्कोर का टारगेट दिया जाता है जिसे उन्हें १२ राउंड में हासिल करना होता है। श्री पटेल ने आर्चरी के भविस्य के सम्बन्ध में हमे बताया की कोरोना के वजह से कई टूर्नामेंट्स टल गए है जिसके कारण कई बेहतर परफॉर्म करने वाले खिलाड़ियों को अपने खेल का जौहर दिखने का मौका नहीं मिला। आगामी समय में जब भी टूर्नामेंट्स होंगे खिलाड़ी बहुत शानदार परफॉर्म करेंगे। कोच मनमोहन पटेल २००७ से २०१२ के बीच आर्चरी के नेशनल में खेल चुके है और आज उनका अनुभव शहर के युवा खिलाड़ियों को मिल रहा है।