हॉकी में हर पोजीशन से खेलने में माहिर अंतरास्ट्रीय खिलाड़ी मृणाल चौबे से एक मुलाकात
अंतरास्ट्रीय स्तर पर भारत का परचम लहराने वाले बेहतरीन गोल कीपर और स्ट्राइकर मृणाल चौबे ने अपने पुरे करियर में जीत हाशिल करने के लिए खेल को खेला यही वजह है की कई बाधाओं के बाद भी सुनहरा छाप आपने खेल के माध्यम से भारतीय हॉकी पर छोड़ा। मृणाल ने शुरूआती शिक्षा राजनांदगाव के युगांतर पब्लिक स्कूल से हासिल किया। शुरुआत से खेल के प्रति रुझान रखने वाले मृणाल का हॉकी का सफर स्कूल के मेस इंचार्ज के आग्रह पर कक्षा ४ से शुरू हुआ। स्ट्राइकर और हाफ लाइन से खेलने के वाले मृणाल ने दुर्ग में एक टूर्नामेंट के दौरान जब गोल कीपर के अचानक अनुपस्थित होने से खुद उसकी जिम्मेदारी लेने का उनका फैसला टर्निंग पॉइंट साबित हुआ। दुर्ग के फाइनल टूर्नामेंट में जीत मिली उनके खेल से प्रभावित साई के राजनांदगाव सेंटर में कोच ऐ टोप्पो ने उन्हें आगे अपने करियर में गोल कीपिंग करने और इसी में प्रैक्टिस के लिए प्रोत्साहित किया। साई की बनी टीम से भी आपने कई बार खेला। कालीकट केरला में स्कूल नेशनल चैंपियनशिप में जिसमे छत्तीसगढ़ ने ब्रोंज मैडल जीता था उसके प्रिपरेशन कैंप के दौरान मृणाल पॉक्स से बीमार पड़ गए थे। बड़ी मुश्किल से उनका चयन हुआ। ब्रोन्जे मैडल मैच जो की पेनल्टी शूट आउट से विजेता घोसित हुई उसमे मृणाल ने शानदार प्रदर्शन किया। पॉक्स होने की वजह से गोल कीपिंग ड्रेस को उतारते समय फोड़ो से खून तक आ जाया करते थे। गोल कीपिंग के सुनहरे खेल को आगे बढ़ाते हुए आल इंडिया साई टूर्नामेंट बंगलोर में सेंट्रल जोन की और से पेनल्टी में टीम को जिताया। २००३ वो समय था जो किसी भी खिलाड़ी के लिए सबसे बड़ा दिन होता है इंडिया कैंप से बुलावा जिसमे पहले हुए कैंप में सुचना न मिलने की वजह से मृणाल कैंप पहुंच ही नहीं सके। दूसरे फेज के कैंप के समय भी बड़ी मुश्किल से उन्हें पता चला की कैंप दिल्ली में लगे है जिनमे उन्हें शामिल होना है। उस दौरान मृणाल को कुछ ही दिन हुए थे अपेंडिक्स के ऑपरेशन कराये ऐसे में इंडिया कैंप में शामिल होना लगभग असंभव था लेकिन अपनी ढृढ़इच्छा शक्ति के कारन वे दिल्ली गए कैंप अटेंड किया और २००३-०४ में पहला भारत के लिए अंतरास्ट्रीय मैच से डेब्यू किया। सिंगापुर में हुए इस मुकाबले में ८ देशो की टीम ने हिस्सा लिया जिसमे भारत को सिल्वर मैडल मिला फाइनल ऑस्ट्रेलिया से हार गए थे। इसके बाद मृणाल लगातार भारतीय टीम के महत्वपूर्ण हिस्सा रहे एवम बेहतरीन खेल का मुजायरा किया। साल 2008 में एशिया कप के दौरान लगातार फॉरवर्ड में तालमेल की कमी और बनने वाले गोल मूव का स्कोर में न बदल पाने से तत्कालीन कोच ऐ के बंसल ने मृणाल को गोल कीपर की जगह स्ट्राइकर बनाकर मैदान में उतरा और उस मैच के फाइनल में कोरिया को हारते हुए गोल्ड मैडल पर कब्ज़ा किया। मृणाल चौबे ऐसे भारतीय खिलाड़ी रहे है जो हर पोजीशन में खेलने की क्षमता रखते है। साउथ एशियाई गेम्स में भी सिल्वर मेडलिस्ट रहे है। कॉमन वेल्थ गेम्स के २०१३ के कैंप के दौरान मृणाल गंभीर रूप से चोटिल हो गए थे उस दौरान उन्हें रिकवरी होने में ६ महीने से ज्यादा का वक़्त लग गया। २००३ से शुरू हुए अंतरास्ट्रीय करियर २०१३ के बाद थोड़ा ठहर गया लेकिन मृणाल ने अपनी म्हणत संघर्ष से भारतीय हॉकी में न केवल योगदान दिया बल्कि देश और अपने प्रदेश के नाम हर जगह रोशन किया। छत्तीसगढ़ शासन की शहीद कौशल्या यादव और शहीद राजीव पांडेय अवार्ड से सम्मानित मृणाल छत्तीसगढ़ शासन ने गुण्डाधुर सम्मान से भी सम्मानित किया है। श्री चौबे की खेल के प्रति समपर्ण आज के युवा पीढ़ीओ को नयी ऊर्जा और प्रेरणा देता है।